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जानिए सूर्य आपको किस भाव का अधिकारी बनाता है।

Created by Asttrolok in Astrology 30 Aug 2023
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जानिए सूर्य आपको किस भाव का अधिकारी बनाता है।

सूर्य का विभिन्न भावो में फल


भारतीय ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और इसका मुख्य कारण है कि भारतीय ज्योतिष में सभी गणना मुख्य रूप से सूर्य को आधार मानकर सूर्योदय के समय से की जाती हैं। सूर्य को पृथक्कारी ग्रह के रूप में भी राहु और शनि की तरह देखा जाता है।

अर्थात सूर्य की दृष्टि जिस भाव पर होगी उससे जातक को किसी ना किसी तरीके से दूर या अलग करने का कारण बनेगा। सूर्य की एक ही दृष्टि होती है जिसे सातवीं दृष्टि कहा जाता हैं। इसके अलावा जिस राशि पर सूर्य स्थित है उसमें मित्र राशि पर होने से जातक को अनुकूल एवम् शत्रु राशि में होने पर प्रतिकूल प्रभाव देता है। ऐसा कई बार होता है कि हमारे लिए कुछ महीने बहुत ही कष्ट दायक तो कुछ लाभदायक होते हैं।

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मुख्यतः ऐसा अन्य ग्रहों की तरह सूर्य के भी बारह राशियों में से किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के कारण होता है। किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन या गमन होना गोचर कहलाता है। जैसे 14 जनवरी को जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश / गमन करते हैं तो उसे हम मकर संक्रान्ति कहते हैं क्योंकि यह सूर्य की संक्रान्ति कहलाती है। 

सूर्य एक राशि में पूर्ण एक महीने रहते हैं। इसी तरह साल भर में सूर्य अपना मेष राशि से लेकर मीन राशि तक सीधे क्रम में ही पूरी बारह राशियों का भ्रमण / गोचर पूर्ण करते हैं। सूर्य और चंद्रमा कभी भी वक्री नहीं होते है। वक्री से तात्पर्य है: उदाहरण के तौर पर पहली तीन राशियाँ है मेष, वृषभ और मिथुन। मान लीजिए कोई ग्रह वृषभ राशि में है, यदि ग्रह राशि परिवर्तन करके मेष राशि में चला जाए तो यह राशियों के सीधा क्रम में न होकर विपरीत क्रम व्यतीत है। अतः ग्रह की चाल वक्री कहलाती हैं। और यदि वह ग्रह सीधे क्रम से राशि बदलकर वृषभ राशि से मिथुन राशि में गमन होगा तो सीधे क्रम में चलने के कारण यह चाल मार्गी कहलाती हैं। राहु और केतु हमेशा उल्टे क्रम में ही चलते हैं, अतः ये दोनों हमेशा वक्री ही रहते हैं, मार्गी कभी नहीं होते हैं। 


जब सूर्य का गोचर विभिन्न राशियों में होता है तो आपकी कुंडली में जन्मराशि से भाव में पहुँचता हैं।


जानिए सूर्य का विभिन्न भावों में गोचर फल: लग्न या जन्म राशि से सूर्य गमन करते है तो...




  • प्रथम भाव में शारीरिक कष्ट, पति-पत्नी की चिंता, धन का व्यय व व्यर्थ परिश्रम कराता हैं।


  • दूसरे भाव में सूर्य रोग, धन हानि, चिंता-कलह का कारण बनता हैं।


  • तीसरे भाव में पराक्रम, भाग्य वृद्धि, शत्रुओं पर विजय, उत्सव एवं शुभ कार्यक्रम में शिरकत कराता हैं।


  • चौथे भाव में राज्य भय, माता को कष्ट, पिता से विवाद, कार्यों में बाधा और सुख में कमी करता हैं।


  • पंचम भाव में धन हानि, मन में विचलन, बच्चों की चिंता इत्यादि फल देता हैं।


  • छठे भाव में रोग से मुक्ति, शत्रुओं पर जीत, धन लाभ, यात्रा और उन्नति के अवसर देता हैं।


  • सातवें भाव में उदर-विकार, दांपत्य जीवन में तनाव, अपयश, आर्थिक तंगी व मानसिक कष्ट देता हैं।


  • अष्टम भाव का सूर्य धन-हानि, मानसिक अस्थिरता, दुर्घटना, राज्य-हानि व रोग प्रदान करता हैं।


  • नवम भाव का सूर्य व्यर्थ भागदौड़, असफलता व अपयश का सामना कराता हैं।


  • दशम भाव में सुखों में वृद्धि, कार्यस्थल में पदोन्नति, उपहार-लाटरी, भ्रमण आदि प्रदान करता हैं।


  • ग्यारहवें भाव में विद्या, लाभ, संतान-सुख, धन-लाभ, स्वास्थ्य-लाभ और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता हैं।


  • बारहवें भाव में व्यर्थ खर्च, शारीरिक कष्ट, विश्वास घात, राज्य भय एवं हानि का सामना कराता हैं।


सटीक विश्लेषण के लिये किसी भी जातक की कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थितियाँ और उनके गोचर फल देखकर ही बताया जा सकता हैं।

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https://www.youtube.com/watch?v=x8IjeyEu3d8&list=PLYRqXVJnyOEzd_NJxRDpExqU9_cfeScAl

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